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कुछ रंग हमारे इस ज़िन्दगी के...एक कोशिश कुछ सीखने और सीखाने की...


खुद से वादा है किया संभलने का फिर क्यूँ चुनोतियों से गुजरता है हर एक दिन....क्यूँ अक्सर उन् रास्तों से वास्ता होता है जिसपे चलने से घवरता ही ये दिल .. न चाहते हुए भी कोई अजनबी अपना बन जाता है, अपना बनकर फिर वो दूर हो जाता है...

ऐसे अनगिनत सवाल हर दिन  हम सब के मन में आता है...अनकहे सवाल तो बहुत  है, पर उनके जवाब शायद नहीं....इन्ही अनसुने अनकहे सवालो  से बनी ये दुनिया कितनी रहस्मयी है जो हमे हर दिन एक नए सच से वाकिफ करवाता है बहुत कुछ सीखलाता है...हम इंसान हर दिन कुछ नया सीखते है इस मायानगरी से...

कोई भी इंसान पूरा नहीं हर कोई अपने आप में अधुरा नहीं...
ये पहेली है ऐसी जिससे समझलो  तो कोई बुरा नहीं....!!

हर दिन एक नयी ज़िन्दगी कुछ नया सीखला जाता है, कट्ठी  मीठी यादें दे जाती  है...
हर उलझन सुलझा जाती  है और कभी उलझनों से ज़िन्दगी को बदल जाती  है...कहते है न ज़िन्दगी सीखने का नाम है...ज़िन्दगी अच्हे बुरे पलों से बनकर हमे आगे बढ़ने में मदद करती  है...कभी हम सोचते है वो पल आता ही क्यूँ है जो हमारा नहीं,..ये ऐसा करवा सच है जो हर किसी के मन  में हर दिन गहराता है...ये सवाल शायद बहुत  बड़ा है पर इसका जवाब उतना ही आसन....क्या हुआ वो पल हमारा न हो सका..पर कहीं न कहीं हम उस पल के जरुर हो गये...जो कभी लौट के आता है या फिर ज़िन्दगी भर के लिए कुछ अच्छी  बुरी यादें दे जाता है...अच्छी यादें  हम संजोउ कर रखते है...और बुरी यादों से कुछ सीखते है...ज़िन्दगी ऐसे करवट लेती रहती हर पल हमे एक नए सच से मिलाती रहती है...
कहते है न कर्म किया जा फल की चिंता मत कर, ऐसे ही हमे भी ज़िन्दगी को अपनी तरफ आने देना चाहिए, उसका स्वागत करना चाहिए ज़िन्दगी हमे अपना रास्ता खुद ही दिखला देगी...बस उस मंजिल तक पहुचना बहुत  आसन हो जाएगा जिसे पाने की खवाइश में दर दर हम भटकते है बस उस मंजिल तक जाने के डगर को हमे खुद पार करना होता है...मंजिल को अगर पहचानलो तो रास्ता अपने आप दिख जाता है.....हमे अपने आप मंजिल तक पहोचने का रास्ता खुद तय करना होता है, और अगर हम  तय करले रास्तों में आये हर एक चुनोतियों को हर छोटी मोटी परेशानियों  को  तो ज़िन्दगी उसी के आगे अपना सर झुका  लेती है...

ख्वाइशों को उड़ान देना गलत नहीं...बस भोरोसा होना चाहिए अपने होसलों पे...
उलझन को सुलझन बनाना तभी जब जूनून हो इस जहा को अपना बनाने  की..


आजकल की लड़कियां भी कम नहीं किसी से...फिर भी लोगो ने समझा है अभी भी उनको कठपुतलियां!!


बात उस ज़माने की है जब औरते घर से बाहर नहीं निकलती थी... मर्द कमाते थे और उनकी बीवियां घर का चूल्हा - चोका संभालती थी...बेटियों की कम उम्र में शादी कर दी जाती थी...पर आज वक़्त बदला है,लड़कियों ने घर से बाहर कदम रख दिया है... लड़कियां आज किसी से कम नहीं...उन्होंने भी समाज में एक नई मिशाल कायम किया है,की वो घर क्या घर से बाहर भी काम कर सकती है...जन्हा लड़कियों ने फ़र्ज़ को निभाते हुए अपनी एक नई पहचान बनायीं है वही समाज के कुछ लोग अभी भी लडकियों को  अपनी हाथ  की कठपुतली समझ रखा है...अभी भी  कुछ असामाजिक तत्वों की वजह से   समाज में लड़कियों के काम करने से लेकर बाहर आने जाने तक  को गलत ठराती  है...लेकिन क्यूँ , अगर लड़की कमा कर लाये तो वो क्यूँ गलत है  वो १० लोगो के संग उठे बैठे   तो क्या गलत है, सिर्फ इसलिए की वो एक लड़की है....क्यूँ उनपे १०० उँगलियाँ उठ जाती है एक लड़के पे क्यूँ नहीं चाहे वो हज़ार पाप करके आये एक लड़की पे ही क्यूँ उठती है लोगो की उँगलियाँ ...!समाज में अभी भी इतनी सद्भावना क्यूँ, एक लड़की पे ही कलंक के निशाँन  क्यूँ पड़ते है, चाहे लड़का  भी उस पाप में बराबर का भागीदारी क्यूँ न हो...सुना होगा कई बार अरे वो तो लड़का है, उस लड़की को तो संभल कर रहना चाहिए, पर क्यूँ एक लड़की ही क्यूँ हमेशा ये सब सहे..समाज में इतना भेद भाव क्यूँ...एक लड़का और लड़की को लेकर....जब शादी होती है तो लोग पति और पत्नी को गाड़ी के २ पहिया के समानं समझते है तो फिर यही भावना कुंवारी लड़कियों के लिए क्यूँ नहीं....
आज हम २१ वी सदी में आकर भी इतना फर्क क्यूँ रखते है  ....?क्यूँ डर के साए में अभी भी जीती है लड़कियां...क्यूँ उनको पर्दा रखना होता है इस समाज से....लड़कियों के अरमानो को ही क्यूँ हमेशा   कुचल दिया जाता है...! हर फ़र्ज़ उनके ही मत्थे क्यूँ???? इस आज़ाद भारत में हम लड़कियां ही क्यूँ आज़ाद नहीं..कर्तव्य अपनी जगह है पर हमारा जन्म कर्त्वए निभाने के लिए हुआ है...हमारी ज़िन्दगी में हमारा कोई हक नहीं..क्यूँ बगावत करनी पड़ती है अपने हक क लिए...????
हमारी खुशियों  के बारे में क्यूँ अभी भी लोग नहीं सोचते....हम सोचते है बड़े होकर माता पीता की ख़ुशी, बड़े हो तोछोटे   भाई बहनों की ख़ुशी, अगर छोटे है तो बड़े भाई बहन  की ख़ुशी, प्रेमी हो तो उसकी ख़ुशी, कदम घर से बाहर रखो तो ज़माने की ख़ुशी, शादी हो तो पति और उसके परिवार की ख़ुशी, बच्चे हो तो उनकी ख़ुशी...हमारी ज़िन्दगी दूसरों की ख़ुशी में ही गुजर जाती है...तो क्या हमे हमेशा अपने हक अपने स्वाभिमान के लिए लड़ना होगा....बिना मांगे क्या हमे हमारा हक नहीं देंगे हमारे अपने....नहीं समझंगे हमारे सपनो को...हमारी दर्द हमारे जस्बातों को...क्या अपनी जस्बातों को दिखाने का हक एक मर्द को ही है, हम लड़कियों को नहीं....??
बदलेगा  हालात   या यूँही जूझते रहेंगे हम अपने हर एक हक के लिए...घुटते रहेंगे हर दिन और जलते रहेंगे हमारे ख्वाइशओं  की  फुलझरियां यूँही दर दर भटकते हुए.....



क्यूँ आज़ाद देश अभी भी गुलाम है लोगो के अनकही अनसुनी खयालातों से...???


मेरा तात्पर्य सिर्फ इतना है की लोगो की सोच क्यूँ ऐसी हो गई है, जो आज़ाद भारत भी गुलाम लगने लगा है ...ये महसूस करने की चीज है जो शायद मैंने किया है...शायद मैं गलत भी हो सकती हूँ...
लोगो ने अपने ही आज़ाद भारत को गुलामी क जंजीरों में बाँध  रखा है...!
किसी ने छल से किसी ने बल से...कोई खुद को महान समझकर धर्म भूल जाता है...कोई भटकते भटकते अपने फ़र्ज़ से वंचित  रह जाता है....!
दोस्तों ये हमारा आज़ाद भारत है जिसकी जिमेदारी हमारे इन् हाथों में है, इन्हें मत मिटने दो, जो वजूद है इनका उन्हें मत खोने दो...गुजारिश मेरी हर उस भारत वासी  से हर एक कदम चाहे वो छोटी हो या बड़ी बढाते चलो जो हमारे देश को एक नयी सिखर पे ले जायेगा... जन्हा हर एक भारतवासी  इस देश को सफल बनाएगा, सिर्फ वो फौजी ही क्यूँ कर्तव्य निभाए हम भी  इस देश के वासी  है..आओ हम सब मिलकर कदम बढ़ाये...थोडा थोडा  योगदान  ही एक दिन सर्धांजलि होगी उनको  जिन्होंने  जान गवा दिए भारत की आजादी के लिए...
कहना आसन है, कई लोग ऐसा कहते है पर इतना मुश्किल भी नहीं....हम एक जूट न होकर न सही पर अपनी सोच एकजुट जरुर कर सकते है भारत के सही निर्माण के लिए जरुरी है  "सोच को बदलना रास्तें अपने आप दिख जाते है, मंजिल की कदम बढाने तक की देर है रास्तें खुद बन जाते है...
जय हिंद जय भारत...!


अन्धकार से भरी ये दुनिया ,अँधी हो गई ये बोझ के तली ये बेनाम गलियाँ...

ये न कोई मुहावरा है नाही किसी ग्रन्थ की लिखी हुई कहावत, ये तो बस सच्चाई  है  मेरे इस जीवन क परखे हुए अनुभव के....!

            "अन्धकार से भरी ये दुनिया ,अँधी हो गई ये बोझ के तली ये बेनाम गलियाँ..."
मैं अपने जीवन के शुरूआती मोड़ पे हूँ..और फिर भी मैं इस दुनिया के नजरिये को पहचान चूँकि हूँ.....
वाकिफ हो चूँकि हूँ इस निराले दुनिया के चाल चलन से....मेरे कहने का मतलब सिर्फ इतना ही है की  ये दुनिया अँधी बन बैठी है पैसे के चका चौंध से....आँखों पे लालसा की पट्टी चढ़ाली है....अज्ञानी बन बैठे है ज्ञान को मिट्टी में मिलाकर,अपनी जेबों को भड़कर लूटरे बन बैठे है दुसरो को ठगकर बएमान हो गई है हर एक गलियां...सुनसान सी पर गई है हर एक माँ की आँचल लूट गई है हर की चैन खो गया सुकून हर औरत की लाज का गहना...!!
हम इस नये युग क जरुर है, जंहा होड़ सी मची है आगे बढ़ने की पर हम  क्यूँ भूलते जा रहे है अपने ही जीवन में पढ़े हुए पाठ को, जो हमे आगे बढ़ने क साथ साथ एक सफल नागरिक बनने का पाठ भी देता है...!
          
आँखों पे क्यूँ पट्टी बाँध बैठे है वो जिनके संग है उनके अनमोल भविष्य की खुबसूरत गलियाँ...
राह बहुत  ऐसे है जिनका कोई ठिकाना नहीं पर हम क्यूँ अपनी चाल बदल लेते है, रौशनी से भटकर क्यूँ अँधेरे  की तरफ चल परते है....गुमराह रास्तें हज़ार है पर खुद को गुमराह न होने देने का रास्ता हमारे खुद के अंदर है, जिसे हम खुद को भटकने से बचा सकते है...
खुद को इतना काबिल बनाओ कोई टीक न सके तुम्हारे पास...किसी से डरो न डरो खुद की आँखों में कभी शर्म को न लाओ...!!

छोड़ो उस रास्तें को जो बुजदिल चुनते है खुद की अलग डगर बनाओ, पहचान बनाओ खुद की ऐसी जिसपे हर दिन तुम खुद भी मुस्कुराओ और औरों को भी मुस्कराओं ...  हर दिन एक कोशिश करो सफल हो न हो फिर भी आगे बढ़ते जाओ, अँधेरे की इस दुनिया में कोशिश की एक दीप जलाओ !

भरो ज़िन्दगी में रंग अपने अपनों के संग...!

होश संभाला जब से इस दुनिया में नफरत को ही पाया...खुदगर्जी की इस दुनिया में कोई अपना न बन पाया...
इस वाक्य का तात्पर्य मेरे अपने जीवन से है...जो सचाई पे आधारित है... मैंने जीवन के इस छोटी सी उम्र में कई उतार चढ़ाब देखे है...कहीं नफरत कहीं धोका, कहीं चालबाजी तो कहीं भेद भाव !
                             प्रेम और भाई चारा शब्द जैसे लुप्त से हो गय है ...लेकिन क्यूँ????
सवाल तो कई सारे है, इसका जावाब कोई ढूंढता है तो कोई उसका साथ नहीं देता, साथ देता है कोई बढ़ता नहीं...! बात वहीँ की वहीँ रह जाती है... ये सवाल आज मेरे मन में भी है , !
मेरा निष्कर्ष बस यहीं तक पहुचाता  है की हम इंसान बुरे नहीं बुरा वक़्त होता है, पर हम इंसान वक़्त को भी  क्यूँ बुरा बनने दे जो हमे खुद अपनों के  नज़र में ही गिरने पे मजबूर करदे ! रास्तें गुमराह करते है पर मंजिल हमे खुद ढूंढनी होती है! कोशिश तो हम इंसानों को ही करना है, एक कोशिश की दीप जलाकर....!
कई लोग मिले मुझे इस ज़िन्दगी  के उतार चढ़ाब में, कई दोस्त कई दुश्मन भी हुए, कभी गलती मेरी भी थी कभी औरों की, पर गलती से सीखना यही हम इंसानों का कर्तव्य है! ज़िन्दगी हमे छोटी छोटी चीज सिखला जाती  है, इसी का नाम है ज़िन्दगी पर जो इस ज़िन्दगी से सबक लेता है ज़िन्दगी उसी की आगे मंजिल तक ले जाती है...कही अनकही पहेली से भडी ये ज़िन्दगी हमे बहुत कुछ दिखा जाती है....कभी रंगों सी हरी बढ़ी ज़िन्दगी तो कभी सुना सा हर पल....मेरी एक कोशिश अपने अपनों क लिए ,उनको एहसास दिलाने क लिए ये ज़िन्दगी बहोत छोटी है, तो जीयो जी भरकर पर अपने अपनों के संग...न क सिर्फ खुद के लिए!
हमारे अपने  ही हमारे ज़िन्दगी की छोटी छोटी कमियों को पूरा करते है, हमसे प्यार करते है, अधूरी है हमारी ये ज़िन्दगी हमारे अपनों क बिना!तो प्यार करे अपने अपनों को...अपने साथी अपने दोस्तों को.....!


 
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