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अन्धकार से भरी ये दुनिया ,अँधी हो गई ये बोझ के तली ये बेनाम गलियाँ...

ये न कोई मुहावरा है नाही किसी ग्रन्थ की लिखी हुई कहावत, ये तो बस सच्चाई  है  मेरे इस जीवन क परखे हुए अनुभव के....!

            "अन्धकार से भरी ये दुनिया ,अँधी हो गई ये बोझ के तली ये बेनाम गलियाँ..."
मैं अपने जीवन के शुरूआती मोड़ पे हूँ..और फिर भी मैं इस दुनिया के नजरिये को पहचान चूँकि हूँ.....
वाकिफ हो चूँकि हूँ इस निराले दुनिया के चाल चलन से....मेरे कहने का मतलब सिर्फ इतना ही है की  ये दुनिया अँधी बन बैठी है पैसे के चका चौंध से....आँखों पे लालसा की पट्टी चढ़ाली है....अज्ञानी बन बैठे है ज्ञान को मिट्टी में मिलाकर,अपनी जेबों को भड़कर लूटरे बन बैठे है दुसरो को ठगकर बएमान हो गई है हर एक गलियां...सुनसान सी पर गई है हर एक माँ की आँचल लूट गई है हर की चैन खो गया सुकून हर औरत की लाज का गहना...!!
हम इस नये युग क जरुर है, जंहा होड़ सी मची है आगे बढ़ने की पर हम  क्यूँ भूलते जा रहे है अपने ही जीवन में पढ़े हुए पाठ को, जो हमे आगे बढ़ने क साथ साथ एक सफल नागरिक बनने का पाठ भी देता है...!
          
आँखों पे क्यूँ पट्टी बाँध बैठे है वो जिनके संग है उनके अनमोल भविष्य की खुबसूरत गलियाँ...
राह बहुत  ऐसे है जिनका कोई ठिकाना नहीं पर हम क्यूँ अपनी चाल बदल लेते है, रौशनी से भटकर क्यूँ अँधेरे  की तरफ चल परते है....गुमराह रास्तें हज़ार है पर खुद को गुमराह न होने देने का रास्ता हमारे खुद के अंदर है, जिसे हम खुद को भटकने से बचा सकते है...
खुद को इतना काबिल बनाओ कोई टीक न सके तुम्हारे पास...किसी से डरो न डरो खुद की आँखों में कभी शर्म को न लाओ...!!

छोड़ो उस रास्तें को जो बुजदिल चुनते है खुद की अलग डगर बनाओ, पहचान बनाओ खुद की ऐसी जिसपे हर दिन तुम खुद भी मुस्कुराओ और औरों को भी मुस्कराओं ...  हर दिन एक कोशिश करो सफल हो न हो फिर भी आगे बढ़ते जाओ, अँधेरे की इस दुनिया में कोशिश की एक दीप जलाओ !

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